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जन्माष्टमी और छत्तीसगढ़ी दान लीला

  • लेखक की तस्वीर: Ashish Sinh
    Ashish Sinh
  • 19 अग॰ 2022
  • 1 मिनट पठन


श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर पं. सुंदरलाल शर्मा की अमर कृति

'छत्तीसगढ़ी दान लीला' के कुछ चुनिंदा अंश-


चौपाई

मोहन सुन्दर श्याम! सुनौ अब।

ग्वालिन हवन तुम्हार शरण सब॥

करिहौ क्षमा जउन कहि पारेन।

हम तुमला सर्वस दे डारेन॥

चाहौ करौ प्राण है हाजिर.।

दही-दूध के बात कउन फिर॥

साध हमार पुरोयेव मोहन।

येखर ऋणिया रहिबो सब झिन॥

आवौ! बैठो! दोना लावौ!।

जतका चाहौ वोतका खावौ॥

सुनत बात हाँसत हैं मोहन।

बैठे गइन ले के संगी मन॥

आपन आपन दही निकारिन।

रौताइन मन परुसे लागिन॥

मोहन खावैं सखा खवावैं।

कइसे कहौं कहत नइ आवैं॥

बाँधे मोर मूँड़ के माहीं।

पहिरे हैं साजू मजुंराही॥

कन्हिया-में-खौंचे-बंसुरी ला।

देखत में मोहत हैं जी-ला॥

दूनो गोड़ पैजनी सोहैं।

सोभा लिखे सके अस को-हैं?॥

हरि तब राधा तनी निहारिन।

आँखी मिलत हाँस दूनो पारिन॥

राधा सब के नजर बचावै।

कोनो हँसत देख झन पावैं॥

ठाढ़े भइन फेर मुख राधा।

्रचितवैं नयन कनेखी आधा॥

देख मने मन में सुख पावैं।

एते हँसैं वोते गौंठियावैं॥

दोहा

कहे लगिन सक्याय तब, मोहन सुन्दर श्याम।

आज दही अडग़ंज तुम, सबो खवायेव राम?॥

चौपाई

राध-मेर लेवना हरि माँगत।

चीखौं तो तुम्हर कस लागत॥

सबके-दुहनी के मैं खायेंव।

नइ तुम्हार चीखे-ला पायेंव॥

दिखथै बने सवो मेर के-ले।

लालच लगत हवै देख-ले॥

कइसे लगथे देय खवाहौ?।

के हम-ला छुच्छा टरकाहौ॥

नस-नस भींद गइस छिन माहीं।

राधा रहे-सकिन-सुन नाहीं॥

लेवना एक थपोल उठाइन।

मुच-मुच करत अगाड़ी आइन॥

ओंठ उलाय डार मुह देहन।

गाल पिचक आपन करि लेइन॥

हरि चबुलावत मूँड हलाइन।

बढ़-के मजा सबो ले पाइन॥

कहिन गोपाल बहुत मैं खायेंव।

येखर नहीं बरोबर पायेंव॥

कोनो गगरा पानी डारे।

कोनो लेवना हवै निकारे॥

कखरो दही मही अम्मठ है।

सेर-भरके मैदा मिलवट है॥

वैसनो कोनो हजार बतावे।

तोर सवाद-ला-नइ-कोनो पावैं॥

ऊपर ले देखत में सादा।

राधा आभा बचन सुनिन जब।

गतर गतर-में भेद गइस सब॥

सुख में आठो अंग जुड़ाइस।

जइसे तिनहा हंडा पाइस॥

दोहा

रोंवा हो गय टाढ़ सब, आनंद कहे न जाय॥

आँखी ले आँसू घलो, बहे लगिस सुख पाय॥

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