हरि ठाकुर-एक नजर
- Ashish Sinh
- 13 मई 2021
- 14 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 14 मई 2021

पूरा नाम-ठाकुर हरिनारायण सिंह
पिता-त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह
माता-गोमती देवी
जन्म तिथि-16 अगस्त 1927
निर्वाण-3 दिसंबर 2001
शिक्षा-बी. ए., एल. एल. बी.
उल्लेखनीय-
1942 के आंदोलन से लेकर 1955 तक गोवा के मुक्ति तक स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय
1950-छात्रसंघ अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ कॉलेज छात्र तथा समाजवादी आंदोलन में सक्रिय
1954-’साम्य योग’ (नागपुर) भूदान की पत्रिका का संपादन, भूदान आंदोलन में सक्रिय
1955-66 तक रायपुर में वकालत
1956-खूबचंद बघेल के नेतृत्व में ’छत्तीसगढ़ी महासभा’ के निर्माण व संचालन में सहयोगी
1960-छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष निर्वाचित
1965-66 ’संज्ञा’ (मासिक) का संपादन
1966-67 ’साप्ताहिक राष्ट्रबंधु’ का संपादन/प्रकाशन
1967-डॉ. खूबचंद बघेल के नेतृत्व में गठित ’छत्तीसगढ़ भ्रातृ संघ’ के महासचिव
1977-छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन का पुनर्गठन और संयोजन
1979-अध्यक्ष, समता गृह निर्माण सहकारी समिति मर्या., रायपुर
1987-संस्थापक अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ लोक कला समिति
1992-’छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण सर्वदलीय मंच’ के गठन के लिए संयोजक तथा अध्यक्षीय मंडल के सदस्य
1995-अध्यक्ष, ’सृजन सम्मान’ साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, जिला साक्षरता अभियान में सक्रिय जिला सतर्कता समिति रायपुर के सदस्य, सलाहकार मंडल दैनिक भास्कर रायपुर, सदस्य परामर्शदात्री समिति, मेकाहारा, रायपुर, सदस्य शहीद स्मारक ट्रस्ट कमेटी, रायपुर, सदस्य जिला पुरातत्व संघ, रायपुर, सदस्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संगठन, रायपुर।
अध्यक्ष-छत्तीसगढ़ साहित्य परिषद्।
प्रकाशित कृतियां-
1. नए स्वर (पांच अन्य कवियों के साथ)-1956
2. त्यागमूर्ति ठा. प्यारेलाल सिंह (जीवनी)-1963
3. लोहे का नगर (काव्य संकलन)-1967
4. छत्तीसगढ़ के रत्न (जीवनियां)-1968
5. छत्तीसगढ़ी गीत अऊ कविता-1968
6. गीतों के शिलालेख (गीत संकलन)-1969
7. नए विश्वास के बादल (काव्य संकलन)-1970
8. जय छत्तीसगढ़ (काव्य संकलन)-1977
9. सुरता के चंदन (गीत संकलन)-1979
10. पौरुषः नये संदर्भ (काव्य संकलन)-1980
11. शहीद वीरनारायण सिंह (लंबी कविता)-1990
12. उत्तर कोसल बनाम दक्षिण कोसल (शोध निबंध)-1990
13. मुक्ति गीत (काव्य संकलन)-1991
14. अंधेरे के खिलाफ (काव्य संकलन)-1991
15. छत्तीसगढ़ के इतिहास पुरुष (जीवन परिचय)-1994
16. शहीद वीर नारायण सिंह (छत्तीसगढ़ी खंड काव्य)-1995
17. बिना बिचारे जउन करे (जिला साक्षरता समिति, रायपुर)-1995
18. प्राचीन कोसल अर्थात् छत्तीसगढ़ राज्य का प्रारंभिक इतिहास-1996
19. छत्तीसगढ़ गाथा (प्रकाशक-रूपांतर, रायपुर)-1999
(ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक निबंधों का संकलन)
20. जल, जंगल और जमीन के संघर्ष की शुरुआत-1999 (प्रकाशक-रूपांतर, रायपुर)
21. धान के कटोरा (काव्य संकलन)-1997
22. कोसल की भाषा कोसली-संबलपुर विश्वविद्यालय में पठित निबंध-1998
23. बानी हे अनमोल (काव्य संकलन)-2001
24. हंसी एक नाव सी (काव्य संकलन)-2001
संपादन-
1. नव ज्योति (मासिक) श्यामबाबू के सहयोगी-1948
2. छत्तीसगढ़ केसरी (साप्ताहिक) क्रांतिकुमार भारतीय के सहयोगी-1949
3. साम्ययोग (साप्ताहिक), दादा धर्माधिकारी के सहयोगी, नागपुर-1954
4. नये स्वर भाग 1 और 2-1956-57
5. संज्ञा (मासिक)-1965-66
6. कुंजबिहारी चैबे की छत्तीसगढ़ी कविताएं-1965
7. राष्ट्रबंधु (साप्ताहिक)-1966-78
8. समवाय (काव्य खंड)-1967
9. पं. विष्णुकृष्ण जोशी अभिनंदन गं्रथ-सहयोगी संपादक-1979
10. रायपुर लघु समाचार पत्र संपादक संघ स्मारिका-1980
11. डॉ. नरेन्द्र देव स्मृति ग्रंथ-सहयोगी संपादक-1981
12. मोतीलाल वोरा अभिनंदन स्मारिका-सहयोगी संपादक-1985
13. कोसल कौमुदी (रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर)-सहयोगी संपादक-1985
14. पं. रामानंद दुबे अभिनंदन ग्रंथ-सहयोगी संपादक-1988
15. धनी धरमदास के छत्तीसगढ़ी पद-1990
16. डॉ. खूबचंद बघेल स्मृति ग्रंथ-1990
हरि ठाकुर पर केंद्रित प्रकाशन
1. हरि ठाकुर रू व्यक्तित्व और कृतित्व-1970
संपादक-नंदकिशोर तिवारी
2. हरि ठाकुर का काव्य व्यक्तिव-1997
संपादक-विश्वेन्द्र ठाकुर
3. अभिनंदन हरि ठाकुर-1997
संपादक-प्रफुल्ल झा, चेतन भारती
4. छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन और हरि ठाकुर-1999
संपादक-चेतन भारती
5. क्रांति पुरुष हरि ठाकुर-2002
(छत्तीसगढ़ साहित्य सम्मेलन की पत्रिका श्प्रसारिका्य का विशेषांक)
6. अगासदिया (दुर्ग)-2002
7. सर्वहारा का विशेषांक-2008
प्रो. जगदीश तिवारी द्वारा ’हरि ठाकुर के साहित्य’ और अनामिका डे द्वारा ’हरि ठाकुर के साहित्य में राष्ट्रीय चेतना’ पीएच-डी. तथा गीता गुप्ता, मजहर अली खान एवं प्रह्लाद दमाहे द्वारा लघु शोध प्रबंध।
सम्मान-
1983-छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य सम्मेलन, धमतरी
1983-श्री चक्रधर ललित कला केन्द्र, रायगढ़
1991-हिंदी साहित्य समिति, थान खम्हरिया
1992-सृजन छत्तीसगढ़ी साहित्य सम्मेलन
1992-छत्तीसगढ़ी लोक कला उन्नयन मंच, भाटापारा
1993-मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन, भोपाल
1994-ऋतंभरा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच, कुम्हारी
1994-छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण सर्वदलीय मंच, पाटन
1995-महात्मा गांधी 125वां जन्मवर्ष समारोह, भोपाल
1995-शास. दू. ब. कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रायपुर
1995-छत्तीसगढ़ राजपूत कल्याण परिषद, रायपुर
1995-हिंद स्पोर्टिंग एसोसिएशन (हीरक जयंती), रायपुर
1995-नवसाक्षर लेखन कार्यशाला, बलौदाबाजार
1996-भारतीय स्टेट बैंक, छुरा
1996-छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति, रायपुर
1996-युवा क्रांति मंच, रायपुर
1997-जनरल सिंधी पंचायत, रायपुर
1997-स्वतंत्रता स्वर्ण जयंती समारोह, रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर
1997-शहीद भगत सिंह वार्ड वेलफेयर एसोसिएशन, टाटीबंध, रायपुर
1997-महावीर शिक्षा प्रचार समिति, रायपुर
1997-शासकीय नवीन कन्या महाविद्यालय, रायपुर
1997-हिंदी विभाग, दुर्गा महाविद्यालय, रायपुर
1997-छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कॉमर्स, रायपुर
(म.प्र. स्तरीय व्यापारिक महाअधिवेशन)
1997-महात्मा गांधी 125वां जन्म समारोह समिति, हिंदी दिवस, दुर्ग
1998-इतिहास परिषद, दुर्गा महाविद्यालय, रायपुर
1998-छत्तीसगढ़ी साहित्य सम्मेलन, रायपुर
1998-राजकुमार कॉलेज, रायपुर
1998-रायपुर विकास प्राधिकरण, रायपुर
1998-स्वर्ण जयंती वर्ष, महाकोशल कला परिषद, रायपुर
1998-अखिल विश्व श्री वल्लभ सेवा समाज
1999-प्रथम रामचन्द्र देशमुख बहुजन सम्मान, भिलाई
1999-ठा. प्यारेलाल सिंह स्मृति सम्मान, भिलाई
(महात्मा गांधी 125वां जन्म वर्ष समारोह समिति)
1999-म. प्र. स्टेट आई. टी. आई. एसोसिएशन, भिलाई
1999-स्व. लखन लाल मिश्र शिलालेख अनावरण समारोह, ग्राम-मूरा, जिला-रायपुर
1999-स्वतंत्रता स्वर्ण जयंती, साइंस कॉलेज, रायपुर
1999-महंत नरेन्द्र दास स्मृति सम्मान, भोपाल
1999-पत्रकारिता सम्मान, छत्तीसगढ़ महाविद्यालय, रायपुर
2000-सरस्वती क्रीड़ा एवं सांस्कृतिक समिति, रायपुर
2000-जनजागरण मंच, कंडेल
2000-स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सम्मान, नगर पालिका निगम, रायपुर
2000-छत्तीसगढ़ बुनकर सहकारी संघ, रायपुर
2001-नागरिक अभिनंदन, छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति, रायपुर
2001-निराला साहित्य समिति, थान खम्हरिया
मरणोपरांत सम्मान-
2002-डॉ. खूबचंद बघेल सम्मान, दुर्ग
2002-प्रथम पं. सुन्दरलाल शर्मा विभूति अलंकरण (सुंदर नगर गृह निर्माण समिति), रायपुर
विशेष-
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता वि. वि. में ’छत्तीसगढ़ विकास विषयक’ फेलोशिप
छत्तीसगढ़ शासन के निर्माणाधीन कृषि भवन का नामकरण
शा. उ. मा. शाला, चंगोराभाठा, रायपुर का नामकरण वर्ष-2003
हरि ठाकुरः परिचय
हरि ठाकुर का जन्म 16 अगस्त 1927 को रायपुर में हुआ था। उनका पूरा नाम ठा. हरिनारायण सिंह था। पिता त्यागमूर्ति ठा. प्यारेलाल सिंह और माता स्व. श्रीमती गोमती देवी थीं। चार भाइयों स्व. ठा. रामकृष्ण सिंह, स्व. ठा. सच्चिदानंद सिंह के बाद वे तीसरे क्रम पर थे। उनके अनुज ठा. रामनारायण सिंह थे। उनकी दो छोटी बहनें स्व. श्रीमती सरस्वती देवी तथा स्व. डॉ. श्रीमती शारदा चंदेल थीं।
पिता ठाकुर प्यारेलाल सिंह
ठा. प्यारेलाल सिंह प्रखर स्वतंत्रता सेनानी थे। महज 14 वर्ष की आयु में उन्होंने छात्रों की मांगों के लिए आंदोलन कर दिया। यह सन 1905 की घटना है। छात्रों की न्यायोचित मांग के आगे राजनांदगांव स्टेट को झुकना पड़ा, जबकि स्टेट के दीवान कुतुबुद्दीन को भी बर्खास्त कर दिया गया। 1909 में ठा. प्यारेलाल सिंह ने राजनांदगांव में सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना की। 1916 में उन्होंने वकालत प्रारंभ की। 1920 के असहयोग आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इसी समय राजनांदगांव के बीएनसी मिल के श्रमिकों ने ठाकुर साहब के नेतृत्व में हड़ताल कर दी। यह देश की पहली संगठित हड़ताल थी, जो 36 दिनों तक चली। श्रमिकों की जीत हुई, पर ठाकुर साहब को स्टेट से निष्कासन का आदेश भी मिल गया। ठाकुर साहब ने गवर्नर से शिकायत की और निष्कासन का आदेश निरस्त हो गया। राजनांदगांव के पोलिटिकल एजेंट को उनसे माफी भी मांगनी पड़ी। 1924 में मिल प्रबंधन पुनरू मनमानी पर उतर आया, तब मजदूरों ने एक बार फिर ठाकुर साहब के नेतृत्व में आंदोलन खड़ा कर दिया। प्रशासन ने जानबूझ कर उत्तेजना फैलाने वाले कार्य किए। कई श्रमिकों को गिरफ्तार कर लिया गया। इस आंदोलन के दौरान श्रमिकों की उत्तेजित भीड़ पर पुलसि ने गोलियां चलाई, जरहू गोंड शहीद हो गए। शासन ने इन घटनाओं के लिए ठाकुर साहब को ही दोषी ठहराया और उन्हें राजनांदगांव स्टेट से निष्कासित कर दिया गया। कुछ समय तक दुर्ग में रहने के बाद वे 1925 में वे रायपुर आ गए और रायपुर ही उनकी कर्मभूमि बन गई। वे 1936 में रायपुर शहरी क्षेत्र से विधानसभा के सदस्य निर्वाचित किए गए। 1937 में उन्हें श्रमिकों के बीच जाकर संघर्ष का नेतृत्व करना पड़ा। बीएनसी मिल के तीनों ही आंदोलनों में श्रमिकों को सफलता मिली। सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-32) में उन्होंने सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। मद्य निषेध, स्वदेशी प्रचार, विदेशी मालों के बहिष्कार आदि कार्यक्रमों में वे अग्रणी थे। उन्होंने किसानों के लिए श्लगान मत दो्य आंदोलन चलाया, फलस्वरूप उन्हें गिरफ्तार कर एक वर्ष की सजा दी गई। रिहा होने के बाद वे पुनरू स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। 26 जनवरी 1933 को वे फिर गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें दो वर्ष की सजा के साथ जुर्माना अदा करने को कहा गया। जुर्माना नहीं पटाने पर उनके घर का सामान कुर्क किया गया और वकालत की सनद भी जप्त कर ली गई। उनकी सनद कभी वापस नहीं की गई और न ठाकुर साहब ने कोई प्रयास किया। 1933-34 तक वे महाकोशल कांग्रेस कमेटी के मंत्री रहे। 1937 में वे रायपुर म्युनिसिपल कमेटी के अध्यक्ष बने। इसके बाद वे लगातार दो बार नगर पालिक निगम के अध्यक्ष चुने जाते रहे। अंचल के सहकारिता आंदोलन के तो वे जनक ही थे। बढ़ई, बुनकरों, मछुआरों, कसारों के साथ तेलघानी संघों की स्थापना उन्होंने की। 1942 के आंदोलन में वे भूमिगत होकर आंदोलन का संचालन करते रहे। स्वतंत्रता के पश्चात आचार्य कृपलानी आदि शीर्षस्थ नेता कांग्रेस से अलग हुए, उस समय वे भी कांग्रेस से अलग हो गए। 1952 में प्रथम विधान सभा चुनाव में वे पुनरू रायपुर से विधायक चुने गए और वे प्रतिपक्ष के नेता चुने गए थे। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को महाकोशल क्षेत्र में मजबूत करने में उनकी महत्वपूर्ण भूूमिका थी। बाद में वे सक्रिय राजनीति से विरक्त हो आचार्य विनोबा के भूदान अभियान में शामिल हो गए। अंततरू वे भूदान अभियान के दौरान 1954 में वीरगति को प्राप्त हुए। म. प्र. भूदान मंडल ने उन्हें ’भूदान आंदोलन का प्रथम शहीद’ घोषित किया।
माता गोमती देवी
ऐसे महान सेनानी के पुत्र में पिता के गुण तो स्वाभाविक रूप से आते ही हैं। माता गोमती देवी तो गृहस्थी को खींचने और संभालने में लगी रहती थीं। वे बड़ी धार्मिक थीं। उन्होंने रायपुर में ही तीसरी तक शिक्षा पाई थी। रामायण, महाभारत आदि धार्मिक ग्रंथों का उन्हें अच्छा ज्ञान था। उनकी स्मरण शक्ति भी तीव्र थी। वे स्वभाव से तेज और अनुशासनप्रिय थीं, ठकुराइन में स्वाभिमान भी कूट-कूट कर भरा हुआ था। ठाकुर साहब के पास तो गृहस्थी के लिए अवकाश नहीं था, पर गोमती देवी ने अपने बच्चों को पिता का अभाव महसूस नहीं होने दिया। अनुशासन और साहित्य का पाठ हरि ठाकुर ने अपनी माता से ही पढ़ा।
गवर्नमेंट स्कूल में झंडा फहराया
1942 के आंदोलन में उनके दोनों अग्रज जेल में थे। गवर्नमेंट स्कूल में झंडा फहराने के कारण हरि ठाकुर को गिरफ्तार कर कोतवाली में बैठा दिया गया, यद्यपि उन्हें शाम को रिहा भी कर दिया गया लेकिन उनकी गतिविधियां जारी रही। प्राचार्य सहगल ने दो-तीन बार शिकायत भी भेजी और आखिरकार स्कूल से नाम भी काट दिया। छुट्टियों में ब्राह्मणपारा की गलियों में चर्चिल के पुतले का जनाजा निकालते, पुतला जलाते और नारेबाजी करते। पुलिस आते तक सारे उडऩ छू हो जाते। वे कभी पकड़े नहीं जा सके।
शिक्षा-दीक्षा
बी. ए. की परीक्षा हरि ठाकुर ने छत्तीसगढ़ कॉलेज से उत्तीर्ण की। यहीं से वे विधि स्नातक भी हुए। उन्होंने विशारद की उपाधि भी हासिल की और 1944 तथा 1945 में ड्राईंग की परीक्षा भी पास की। 1950 में वे छत्तीसगढ़ कॉलेज के छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए, उसके पहले छात्र यूनियन के असिस्टेंट सेक्रेटरी भी रहे थे। हिंद स्पोर्टिंग एसोसिएशन की फुटबॉल टीम के भी वे सदस्य रहे। 1954 में हरि ठाकुर नागपुर गए और एम. ए. हिंदी के छात्र हो गए। साथ ही भूदान की पत्रिका ’साम्य योग’ के संपादन में सहयोगी हो गए। यहीं उनका परिचय जयप्रकाश नारायण से भी हुआ, वे समाजवादी आंदोलनों में भी हिस्सा लेने गए।
नागपुर प्रवास के दौरान उनका साहित्य शिल्प प्रौढ़ता की ओर अग्रसर हुआ। यहां वे मुक्तिबोध, रामकृष्ण श्रीवास्तव, नर्मदा प्रसाद खरे, गिरिजाशंकर माथुर जैसे साहित्यकारों के संपर्क में आए। 1954 में पिता त्यागमूर्ति ठा. प्यारेलाल सिंह का स्वर्गवास हो गया। हरि ठाकुर के अग्रज ठा. रामकृष्ण सिंह ठाकुर साहब के कार्यों को आगे बढ़ाने में लगे थे और रायपुर के रिक्त विधायक सीट के उम्मीदवार थे, अतः हरि ठाकुर को रायपुर लौटना पड़ा। 1955 से 1966 तक उन्होंने रायपुर में वकालत की। इस बीच हरि ठाकुर ने 1955 में गोवा मुक्ति संग्राम में हिस्सा लिया। 1956 में प्रदेश के अन्य पांच कवियों के साथ ’नए स्वर’ में पहली बार किताब के रूप में प्रकाशित हुए। यद्यपि उनकी पहली रचना ’भौंहें’ माधुरी के प्रथम पृष्ठ पर 1948 में छप चुकी थी। अन्य पत्र-पत्रिकाओं में वे निरंतर छप रहे थे और कवि सम्मेलनों की शोभा बढ़ा रहे थे। लगभग इसी समय हरि ठाकुर, नारायणलाल परमार और बच्चू जांजगीरी रूपी कवित्रय की धाक साहित्य जगत में जम रही थी। 1956 में वे डॉ. खूबचंद बघेल द्वारा राजनांदगांव में आमंत्रित छत्तीसगढ़ी महासभा में शामिल हुए। संगठन में संयुक्त सचिव नियुक्त किए गए। सम्मेलन के दौरान छत्तीसगढ़ी इतिहास और साहित्य की खोज तथा प्रकाशन के लिए एक उपसमिति का गठन किया गया। हरि ठाकुर को संयोजक बनाया गया। इसी वर्ष उन्होंने इतिहास के पन्नों से नारायणसिंह की खोज की और उन्हें 1857 के ’छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद’ के रूप में प्रतिष्ठित किया। इस संदर्भ में सविस्तार लिखे गए उनके लेख के आधार पर बलौदाबाजार के तत्कालीन तहसीलदार ने प्रदेश शासन को प्रतिवेदन भेजा। 1857 की क्रांति के 100 वर्ष होने के उपलक्ष्य में 1957 में प्रदेश सरकार ने हरि ठाकुर के लेख के आधार पर नारायण सिंह को शहीद स्वीकार कर लिया। 1959 में उनका विवाह कारंजा (महाराष्ट्र) के जमींदार स्व. ठा. गोपालसिंह की पुत्री सरला देवी के साथ हुआ। श्रीमती सरला देवी के भाई ठा. विट्ठल सिंह नागपुर विधानसभा में विधायक थे।
1960 में हरि ठाकुर को छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य सम्मेलन अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। 1963 में उन्होंने ठा. प्यारेलाल सिंह की जीवनी लिखी। 1965-66 में बच्चू जांजगीरी के साथ उन्होंने ’संज्ञा’ (मासिक) का संपादन किया। ’नए स्वर’ और ’संज्ञा’ अखिल भारतीय स्तर पर चर्चित हुई। 1966 में उन्होंने ठा. प्यारेलाल सिंह द्वारा स्थापित (1950) साप्ताहिक ’राष्ट्रबंधु’ का पुनप्र्रकाशन प्रारंभ किया। यह साप्ताहिक 1978 तक प्रकाशित होता रहा। 1967 में डॉ. खूबचंद बघेल ने छत्तीसगढ़ भ्रातृसंघ का गठन किया। संगठन में हरि ठाकुर को महासचिव बनाया गया।
छत्तीसगढ़ में साहित्य और साहित्यकारों की कमी तो थी नहीं, लेकिन प्रकाशन की समस्या हमेशा खड़ी रहती थी। इसलिए रायपुर में रेडियो स्टेशन की आवश्यकता गंभीरता के साथ महसूस की जा रही थी। 1962 से ही दिशा में प्रयास चल रहे थे। वरिष्ठ संस्कृति कर्मी और अवकाश प्राप्त आकाशवाणी के वरिष्ठ उद्घोषक लाल रामकुमार सिंह का कहना है कि आकाशवाणी केंद्र की स्थापना का श्रेय हरि ठाकुर और बच्चू जांजगीरी के जबर्दस्त अभियान को ही जाता है।
साहित्य जगत के साथ-साथ हरि ठाकुर छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की दिशा में चल पड़े थे। छत्तीसगढ़ की विभूतियों के जीवन चरित्र पर आधारित ’छत्तीसगढ़ के रत्न’ तथा ’छत्तीसगढ़ी गीत अउ कविता’ 1968 में प्रकाशित हुई। 1967 में उनका कविता संग्रह ’लोहे का नगर’ पर्याप्त ख्याति बटोर चुका था। 1969 में गीत संकलन के रूप में ’गीतों के शिलालेख’ का प्रकाशन हुआ, काव्य संकलन ’नए विश्वास के बादल’ का प्रकाशन 1970 में हुआ।
1977 में सुप्तप्राय छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन को उन्होंने पुनर्जीवित किया। इस कार्य में उन्हें गनपतलाल साव और रामअधार तिवारी का सहयोग मिला। छत्तीसगढ़ राज्य की भावना से ओतप्रोत छत्तीसगढ़ी काव्य संकलन ’जय छत्तीसगढ़’ भी इसी वर्ष प्रकाशित हुई। गीत संकलन ’सुरता के चंदन’ 1979 में तथा काव्य संकलन ’पौरुषः नए संदर्भ’ का प्रकाशन 1980 में हुआ। 1979 में समता सहकारी गृह निर्माण समिति के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। 1985 में वे कांग्रेस (इ) के रचनात्मक प्रकोष्ठ के रायपुर जिला इकाई के अध्यक्ष मनोनीत किए गए। 1987 में लोक कलाकारों को संगठित कर उन्होंने ’छत्तीसगढ़ लोक कला समिति’ की स्थापना की। वे संस्थापक अध्यक्ष बनाए गए। समिति के माध्यम से अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया तथा लोक कलाकारों की नई पंक्ति सामने आई। उनके इस कार्य में सुरेश कश्यप, नरेश निर्मलकर, राकेश तिवारी, हृदयेश चैहान, अरुण तिवारी सहयोगी थे।
’उत्तर कोसल बनाम दक्षिण कोसल’ नामक शोध निबंध तथा ’शहीद वीर नारायण सिंह’ पर लंबी कविता 1990 में प्रकाशित हुई। इन दोनों कृतियों का उद्देश्य छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान को जगाना था। ’मुक्ति गीत’ और ’अंधेरे के खिलाफ’ कविता संग्रह भी ऐसी ही भावना से प्रेरित होकर लिखी गई थी, जिनका प्रकाशन 1991 में किया गया।
1992 में छत्तीसगढ़ राज्य के लिए पुनः संगठित होने के उद्देश्य से हरि ठाकुर के घर में एक बैठक आयोजित की गई। बैठक में एक ’सर्वदलीय मंच’ की आवश्यकता महसूस की गई। मंच के गठन के लिए हरि ठाकुर को संयोजक बनाया गया। मंच के गठन के बाद वे अध्यक्षीय मंडल में भी शामिल किए गए। सर्वदलीय मंच में चंदूलाल चंद्राकर के शामिल हो जाने से राज्य आंदोलन प्रखर होता गया। पहली बार छत्तीसगढ़ बंद का आह्वान किया गया। बंद की घोषणा के पीछे हरि ठाकुर की योजना जनता के मन मस्तिष्क को टटोलना था। बंद सफल रहा। जनता की ’राज्य’ के प्रति भावना का स्पष्ट संकेत मिल चुका था। पूरे छत्तीसगढ़ में ब्लॉक और तहसील स्तर पर मंच का गठन किया गया। रैलियों और सभाओं के सिलसिले ने श्राज्य्य के पक्ष में पुख्ता माहौल तैयार कर दिया।
1995 में युवा रचनाकारों को लेकर उन्होंने ’सृजन सम्मान’ नामक साहित्यिक सांस्कृतिक समिति की स्थापना की। वे संस्थापक अध्यक्ष थे। छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन से साहित्यकार तो पहले से ही जुड़े हुए थे। हरि ठाकुर की प्रेरणा से नई पीढ़ी के रचनाकार भी आंदोलन में शामिल होने लगे। गोष्ठियों में छत्तीसगढ़ राज्य केन्द्र बिंदु हो गया था। 1996 तक सर्वदलीय मंच के माध्यम से छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन तीव्र गति पकड़ चुका था। सहसा चंदूलाल चंद्राकर के देहावसान से गति मंद होने लगी। एक तरह से मंच बिखर गया। इसी वर्ष छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कॉमर्स जैसा शुद्ध व्यावसायिक संगठन इस दिशा में सामने आया। ’छत्तीसगढ़ राज्य समन्वय समिति’ का गठन हरि ठाकुर के संयोजकत्व में किया गया। आंदोलन से बुद्धिजीवियों तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को जोड़ने में उनकी भूमिका थी। आंदोलन के मामले में उन्हें शिवसेना या कम्युनिस्ट पार्टी, कांग्रेस या भाजपा किसी से भी परहेज नहीं था। वे हर मंच से ’राज्य’ के पक्ष में अपनी बात कहते थे। चुनावी घोषणा पत्रों में छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण का वायदा भाजपा और कांग्रेस ने किया, कम्युनिस्ट पार्टी भी पीछे नहीं रही। अंततोगत्वा 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य भारत के 26वें राज्य के रूप में देश के नक्शे में आ गया। वे भय, भूख, भ्रष्टाचार और प्रदूषणमुक्त छत्तीसगढ़ राज्य की कल्पना करते थे। हर हाथ को काम और हर खेत को पानी मिले, स्थानीय युवकों को रोजगार मिले यही उनकी सोच थी।
आंदोलन के दिनों में हरि ठाकुर का चिंतन, मनन और भी तीक्ष्ण होकर सामने आया। समाचार पत्रों में छत्तीसगढ़ राज्य विषयक लेख, छत्तीसगढ़ की विभूतियों की जीवन गाथा, साहित्यिक आयोजनों में भागीदारी के व्यस्ततम क्षणों में भी उनका सृजन अबाध गति से चलता रहा। 1994 में छत्तीसगढ़ के इतिहास पुरुष (21 ऐतिहासिक पात्रों का जीवन परिचय), अमर शहीद वीर नारायण सिंह खंड काव्य (1995) का प्रकाशन हुआ। समीक्षक¨ं ने इसे छत्तीसगढ़ी में लिखा गया वीर रस का प्रथम खंड काव्य घोषित किया है। 1996 में प्राचीन कोसल अर्थात छत्तीसगढ़ का आरंभिक इतिहास, 1999 में छत्तीसगढ़ गाथा और जल, जंगल और जमीन के संघर्ष की शुरूवात प्रकाशित हुई। इसी वर्ष धान के कटोरा और बानी हे अनमोल भी प्रकाशित हुई। हंसी एक नाव सी (गीत संग्रह) उनके जीवन काल में छपा अंतिम संग्रह है। इननमें उनके अप्रकाशित गीतों को सम्मिलित किया गया है।
1948 में वे नव ज्योति (मासिक) में स्व. घनश्याम प्रसाद ’श्याम’ के सहयोगी हो गए थे। अगले वर्ष क्रांतिकुमार भारतीय के साथ होकर ’छत्तीसगढ़ केसरी’ का संपादन करने लगे। 1956-57 में नए स्वर-1 और 2 का संपादन उन्होंने किया। 1965 में कुंजबिहारी चैबे की छत्तीसगढ़ी कविताओं का संपादन और प्रकाशन तथा 1967 में समवाय के कविता खंड का, 1979 में विष्णु कृष्ण जोशी अभिनंदन ग्रंथ, 1980 में रायपुर लघु समाचार पत्र संपादक संघ की स्मारिका, 1981 में डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा स्मृति ग्रंथ, 1985 में मोतीलाल वोरा अभिनंदन ग्रंथ, 1988 में कौसल कौमुदी (रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय), 1988 में पं. रामानंद दुबे अभिनंदन ग्रंथ, 1990 में धनी धरमदास के छत्तीसगढ़ी पदों का, 1993 में डॉ. खूबचंद बघेल स्मृति ग्रंथ तथा पं. सुंदरलाल शर्मा कृत छत्तीसगढ़ी दानलीला (रविशंकर विश्वविद्यालय, 2001) का संपादन उन्होंने किया। इसके अतिरिक्त रायपुर और दुर्ग के साक्षरता मिशन के तहत नव साक्षरों के लिए भी उन्होंने लेखन कार्य किया।
हरि ठाकुर जिला साक्षरता समिति के सदस्य थे और साक्षरता अभियान में पूरी तन्मयता के साथ उन्होंने हिस्सा लिया। गांवों में कार्यशालाओं में वे उपस्थित रहा करते थे। वे रायपुर में गठित म. प्र. सरकार के प्रथम जिला सतर्कता समिति के सदस्य नामजद किए गए थे। वे मेकाहारा (वर्तमान आम्बेडकर अस्पताल) के परामर्शदात्री समिति, दैनिक भास्कर सलाहकार मंडल, शहीद स्मारक ट्रस्ट कमेटी, जिला पुरातत्व संघ, जिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संगठन के सदस्य थे। छत्तीसगढ़ राज्य के लिए रायपुर में अखंड धरना के वे संरक्षक थे।
1985-86 के मध्य वे शंकरगुहा नियोगी के संपर्क में आए। दोनों के बीच घनिष्ठता बढ़ती गई। हरि ठाकुर छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के संपोषक बनाए गए थे। छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के कार्यक्रमों में सक्रिय हिस्सेदारी निभाया करते थे। चिपक¨ आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा, नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेघा पाटकर, बाबा आम्टे और अण्णा हजारे से भी उनका संपर्क था।
फरवरी 2001 में उन्हें कैंसर ने घेर लिया। अप्रैल और जून में उनके जबड़े का ऑपरेशन किया गया और सितम्बर में भोपाल में रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी के जरिए इलाज हुआ। वे रायपुर लौटे तो पूर्ण स्वस्थ हो कर, किंतु 30 नवम्बर की रात्रि उन्हें तकलीफ होने के कारण अस्पताल में भर्ती किया गया। जांच में निमोनिया पाया गया। आखिर 3 दिसंबर 2001 की रात्रि पौनो 9 बजे उनका स्वर्गारोहण हो गया। 4 दिसंबर को उनका अंतिम संस्कार संपन्न हुआ। विधानसभा में श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने ’लीविंग इन्सायक्लोपीडिया’ कहा था।
हरि ठाकुर के अभिन्न सखा ’बच्चू जांजगीरी’ ने लिखा है-हरि ठाकुर मूलतः यशस्वी गीतकार हैं। इधर उनका अधिकांश समय राजनीति में डूबा रहा। उनका मूल उद्देश्य था छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण। परमपिता की अनुकम्पा से छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के क्षण बहुत समीप आते दिख रहे हैं। मैं उस दिन की अत्यधिक प्रतीक्षा कर रहा हूं, क्योंकि उस दिन हरि ठाकुर के उद्देश्य की पूर्ति हो जाएगी अर्थात् छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण का जो क्रूस अपने कंधों पर ढो रहा था, उससे वह मुक्त हो जाएगा और उसके बाद मैं उसके पूर्ण रूप से साहित्य में वापसी की कामना करता हूं।
राज्य निर्माण के बाद हरि ठाकुर की चिंता छत्तीसगढ़ी भाषा को राजभाषा का दर्जा कैसे मिले, इस विषय पर केंद्रित हो गई थी। इस बीच छत्तीसगढ़ी के विषय में उन्होंने लगभग 15 लेख लिखे। ये लेख वर्ष 2001 के जून और जुलाई तथा सितंबर से नवंबर के बीच अस्वस्थता और मानसिक दबाव के बीच लिखे गए। कैंसर का बोझ क्या कम वजनी होता है? इन लेखों को संकलित कर ’अमृत कलश’ के रूप में छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के सातवें अधिवेशन के अवसर पर 2002 में प्रकाशित किया गया। अपने जीवन काल में अनेक सम्मानों से अलंकृत हरि ठाकुर को मृत्यु के बाद जनवरी 2002 में प्रथम सुंदरलाल शर्मा विभूति अलंकरण सुंदरनगर सोसायटी रायपुर द्वारा तथा जुलाई 2002 में तृतीय डॉ. खूबचंद बघेल सम्मान भी प्रदान किया गया।
सृजन सम्मान, छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य सम्मेलन और छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति की ओर से उनकी स्मृति में सम्मान प्रदान किए जा रहे हैं। कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्ववविद्यालय रायपुर हरि ठाकुर की स्मृति में छत्तीसगढ़ विकास विषयक ’फेलोशिप’ प्रदान कर रहा है। निर्माणाधीन कृषि भवन का नामकरण हरि ठाकुर की स्मृति में करने की घोषणा तत्कालीन कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू ने की है। छत्तीसगढ़ शासन ने वर्ष 2013 में चंगोराभाठा स्थित हाईस्कूल का नाम हरि ठाकुर उ. मा. विद्यालय घोषित किया। हरि ठाकुर के व्यक्तित्व व कृतित्व पर दो पीएच-डी. की उपाधियां प्रदान की गईं और चार लघु शोध प्रबंध लिखे गए।
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